नुगरा का तमाशा 28वां शो, बाल भवन , चंडीगढ़, पंजाब 23rd Feb 2020 : TFT 15th Theatre Festival , one month.
नुगरा का तमाशा 28वां शो, बाल भवन , चंडीगढ़, पंजाब 23rd Feb 2020
नुगरा का तमाशा
मूल कथा : विजनदान देथा व देशज लोक
नाटकीय कथोपकथन व अभिनय : सुमन कुमार
अलबेला के जन्म लेते ही ज्योतिषियों ने एलान किया कि अगर अलबेले ने 6 साल से 24 साल की उम्र तक किसी कुंवारी कन्या का मुख देखा तो सांप डस लेगा। अलबेले के माता-पिता ने घबरा कर उसके ब्याह 4 साल की उम्र में ही कर दिया और दुल्हन को 24 साल का होने पर गौना कराने की ठान उसे घर ले आए कर चारदीवारी में बंद कर बड़ा करने लगे। अलबेला के 24 साल पूरा होते ही उसे अपनी दुल्हन को गौना कर लाने के लिए भेजा गया।
रास्ते में वह एक सांप को धन के लोभ में कालबेलियों से बचाता है। जान बचने के बाद सांप उसे ही डासना चाहता है। अलबेला मिन्नत के बाद एक हफ्ते में सांप की इच्छापूर्ती करने का वचन देकर दुल्हन के पास जाता है। दुल्हन उसका हाल जानकर उसके साथ खुद भी आकर सांप से दया और जान बचाने की गुहार लगाती है। सांप अपने फ़ैसले पर अटल रहता है पर पंच करने को तैयार होता है। दुल्हन दो पंचों को सांप के पक्ष में पाती है पर तीसरा पंच आख़िरकार काव्यात्मक न्याय की मिसाल स्थापित करता है।
मंच पर
अभिनेता: सुमन कुमार व त्रियन प्रतिबिम्ब
संगीत मंडली :
मुकेश भारती, योगेश कुमार पांडेय (गायन), जमील ख़ान (नक्कारा), गौरव राय (बांसुरी), प्रतिभा सिंह (विविध वाद्य) व शम्भू सिसोदिया (सारंगी)
मंच परे :
मंच पार्श्व चित्र: भुनेश्वर भास्कर
संगीत संयोजन : उमाशंकर
प्रस्तुति सहायक : रूप चंद
प्रस्तुति नियंत्रक : प्रतिभा सिंह
आलेख, अभिकल्पना, अभिनय :
सुमन कुमार
8 दिसम्बर 1967 में बांका, बिहार में जन्म.
1996 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली से और 1998 में माउंटव्यू थिएटर स्कूल, लन्दन से डिजाईन में प्रशिक्षित सुमन ने पटना विश्वविद्यालय से बी. एड.(91-92) और मगध विश्वविद्यालय से भौतिकी में होनर्स(1988) की पढाई की है. 1984 से इप्टा, पटना से जुड़ कर रंगकर्म में सक्रीय हुए.
सुमन ने नाटक लिखे, निर्देशित और अभिकल्पित किया तथा विविध विषयों पर संगीतिकों, नाटकीय अभिव्यक्तियों की रचना की. कविताओं और अनाटकीय कथ्य और साहित्य को मंच पर प्रस्तुति करने के लिए विशेष रूप से चर्चित रहे. रुपांतरण, अनुवाद और नाट्य लेखन से 30 से भी अधिक मंचित प्रस्तुतियों के हजारों मंचन विविध भाषाओँ और शैलियों में हुआ. सुमन ने शेक्सपियर, जे.एम. सिंज, चेखव, ब्रेख्त, ओ नील, भीष्म सहनी, प्रेमचंद, हरिशंकर पारसाई, नेरुदा, मुक्तिबोध, शिम्बोर्शाका, धूमिल, राजकमल चौधरी, काशीनाथ सिंह, फ़ैज़, रांगेय राघव, निर्मल वर्मा, उमाकांत चौधरी आदि की रचनाओं से प्रेरित नाट्य अनुभव को दर्शकों के साथ सांझा किया.
रंगमंच के भारतीय एवं विदेशी विविध विचार, अभ्यास, सन्दर्भ, जीवन और दर्शन तथा प्रयोग सूत्रों और प्रशिक्षण पद्धतियों पर सुमन ने कई आलेख भी लिखें हैं. बाल, युवा और शोकिया कलाकारों के साथ कई भाषाओं, बोलियों में प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन और सञ्चालन करने वाले सुमन ने विशेष रूप से चुनोतियों का सामना करने वाले बच्चों के लिए भी रंगमंच को उनके रचनात्मक सम्प्रेषण का उपादान बनाया.
रंगमंच के मौलिक आस्वादन का नया अनुभव सृजन के लिए सतत प्रयोगशील सुमन कुमार ने एक अभिनेता, निर्देशक, परिकल्पक, प्रशिक्षक और नाटककार के रूप में योगदान देते हुए, 2012 से संगीत नाटक अकादेमी, दिल्ली के एक अधिकारी के रूप में रंगमंच, लोक कला एवं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सेवा में कार्यरत हैं. सुमन ने डेनमार्क, लन्दन, पेरू और क्यूबा में रंगमंच और प्रदर्शन के सन्दर्भ में अभिनेता, नाटककार और व्यस्थापक के रूप में यात्रा की.
रंगमंच में योगदान के लिए सुमन को पटना में आंसु संवाद लेखन पुरस्कार तथा कलाश्री सम्मान, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एवं संगीत नाटक अकादेमी, दिल्ली की छात्रवृत्ति एवं अध्धयनवृत्ति, चार्ल्स वैल्स इंडिया ट्रस्ट स्कालरशिप, भारत सरकार की कनिष्ट संस्कृति फ़ेलोशिप के साथ 2012 में नाट्य लेखन के लिए महिंद्रा एक्सेलेंसी अवार्ड दिया गया. सुमन को नाट्य लेखन के लिए रास कला सम्मान, नटसम्राट सम्मान भी मिला है। 2017 में आल इंडिया फोक आर्टिस्ट फेडरेशन द्वारा "लोक कलाविद सम्मान", हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार के द्वारा 2017-2018 का "हिंदी नाटक सम्मान".
समझोता, अंधरे में, मुक्ति-प्रसंग, एक तारा टूटा, गगन घटा गहरानी, सूरा सों पहचानिए, सूरज का संतवा घोड़ा, दिल्ली की दीवार, ऑथेलो, मैकबेथ, द राइज एंड फल ऑफ़ थे सिटी ऑफ़ महागोनी, द प्लेबॉय ऑफ़ द वेस्टर्न वर्ल्ड, एक्सेप्शन एंड थे रूल, अग्नि और बरखा, चेखोव की दुनिया, ट्रेन तो पाकिस्तान, महामहिम, दस दिन का अनशन, स्वर्गलोक में डेमोक्रेसी, ब्लैकबोर्ड ब्रिगेड, बालचरित, अस्सी-बहरी अलंग, सत्याग्रह, बूढी काकी, कसप, नुगरा का तमासा, परिंदे, गदल, महादेव, नटवर ने बांसुरी बजाई, खारु का खरा किस्सा, कंकाल आदि कई मंच आलेख लिखे जिनका मंचन देश में कई भाषाओं में विविध रूपों में मंचित किया गया. सुमन द्वारा अभिनीत ‘नुगरा का तमासा’ (2015) बेहद सराहनीय प्रचलित एकल अभिनय है जिसे वे बिना आलेख, किस्सागोई के अपने विशिष्ट अंदाज़ में जीवंत अभिनीत करते हैं.
कला मंडली
कला मंडली, दिल्ली में रहने वाले देश भर के प्रदर्शनकारी कला विधाओं से जुड़े कलाकारों का समूह है जो प्रदर्शनकारी कलाओं में नए प्रयोग के लिए समर्पित है। अपने कार्यक्रमों के माध्यम से कला मंडली देश की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में अन्वेषण और प्रयोग कर कलात्मक अनुभव नए रूप और संवाद आस्वादन के लिए प्रस्तुत करती है जिसमें मानवता का स्वर प्रमुखता से प्रतिध्वनित होता है।
कला मंडली समाज के वंचित समुदायों, विविध चुनोतियों को सामना करने वाले व्यक्तियों और समुदायों को भी समकालीन अभिव्यक्ति के लिए कला के विविध आयामों और उपकरणों से जोड़ती है। युवाओं, बच्चों के लिए प्रशिक्षण के कर्यक्रम चलती है।
राम की शक्ति पूजा, बनारस की सुबह से अवध की शाम तक, ऋतुसंहार, रामेश्वरचरित, भेड़िये, खारू का खरा किस्सा, नुगरा का तमसा, विद्यापति बसंत, गांधी और राम, टुअर-टापर, गबरघिचोर, दस दिन का अनशन, सूरज का सातवां घोड़ा आदि कला मंडली की लोकप्रिय प्रस्तुतियाँ हैं। किन्नर समुदाय के अनुभवों और अभिनेताओं से रचित प्रस्तुति "खुशियां और अफ़साने" को दिल्ली वाम पटना में सफ़लता से मंचित किया गया।
अगरतला, रायगढ़, कोलकता, चंडीगढ़, दामोआह, भोपाल, हिसार सहित कई शहरों में कला मंडली ने अपने नाटकों के प्रदर्शन किए है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संगीत नाटक अकादेमी, साहित्य कला परिषद,नाइ दिल्ली के सहयोग से कला मंडली ने प्रदर्शन व नाट्य प्रशिक्षण के कई कार्यक्रम संचालित किए हैं।
Nugra Ka Tamasa
If Albela ever sees the face of an unmarried girl during 6 year to 24 years of his age, will die of a snake bite. The horrified parents of Albela married him at 4the age of four and kept him confined in a room of their house till the age of 24. After 24 he was sent to bring his bride. On the way, he saves the life of a snake but as a return gift the snake wanted to bite him!
Albela wept, pleaded and promised to come back after seeing his bride. The Snake allowed him to go only on this pretext, but warned him that if he did not prove true his words, he would kill his entire family. After a week Albela returned with his bride as promised to the snake, requesting him to now leave him but his prayers all go unheard and in vain till a poetic justice is done..
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